Poem-Hindi-लफ़्ज़ों के गुलदस्ते बनाऊं तो बनाऊं किसके लिये ।

सोचता हूं 

नहा कर बदलूँ कपड़े- 

बाल सँवारुं ,

मगर 

जाऊंगा कहां -?

इस शहर में तो 

अब कोई ऐसा नही

जिसे मिलना है मुझे

जो धूप के साथी थे

उनकी शाम हो चुकी

या रात के अंधेरे में 

कहीं खो गए वो

मुद्दतों से 

न आया न गया कोई

सुनसान पड़ा है

घर का आंगन

कोई आने वाला भी नही

अंधेरे घर मे कोई दीप

जलाऊं किसके लिये

लफ़्ज़ों के गुलदस्ते

बनाऊं तो बनाऊं किसके लिये

सब संगी-साथी छूट गए

अब धूल उड़ाने बाहर जाऊं 

किसके लिये --???

???

फूलों की पंखुड़ियां खिली जब भँवरे की धुन सुनी 


आजकल अधूरी हकीकतों से 
रूबरू हो रहा हूँ मै
तलाश के रास्ते 
खुल गये है
उमीदों के कारवां चलने लगे हैं
उमंगे पंख फड़फड़ाने लगी
सपने अठखेलियां करने लगे
बदलते मौसम ने
हवाओं में खुशबू बिखेरी
सही क्या और गलत क्या
रंगों से इंद्रधनुष की
शोभा बड़ी
फूलों की पंखुड़ियां खिली
जब भँवरे की
धुन सुनी
धड़की धरती बादल गरजे
हरियाली पर बूंदे गिरी
समाए सपने झरनों की आगोश में
अंकुर फूटे तो
ठीक ही फूटे , 
कुदरत के अपने तरीके
गलत नही 
***
प्रस्तुति लेखक श्री भगत पवन कौशल 




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