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| जम्मूकश्मीर महौत्सव शुरू अगले तीन माह तक चलेगा रंगा रंग कार्यक्रम। |
जम्मूकश्मीर ही नहीं पूरे देश के साथ-साथ विशव में कोरोना संक्रामण के कारण सांस्कृतिक गतिविधियाँ ठप हो कर रह गई हैं। फिर भी जम्मूकश्मीर उपराज्यपाल इस कोशिश में हैं कि जम्मू-कश्मीर में फ़िल्म शूटिंग का सुनहरा दौर एक बार फिर से लौट सके। हाल ही में वेब सीरीज महारानी की शूटिंग के सचिवालय तक को फ़िल्म निर्माण के लिए खोल दिया गया। इस फ़िल्म निर्माण के कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धी यह रही कि इसमें जम्मू के करीब 275 कलाकारों को छोटा मोटा अभिनय का काम करने का अवसर प्राप्त हुआ।
इस सप्ताह की सोमवार को जम्मूकश्मीर उपराज्यपाल ने जम्मू, श्रीनगर, में फ़िल्मोत्सव के अलावा तीन मेगा सूफी महोत्सव के आयोजन की घोषणा कर कलाकारों में फेली अप्रसन्नता को पूरी तरह प्रसन्नता में परिवर्तित कर दिया है। इतना नहीं जम्मू-कश्मीर में एक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का केंद्र खोलने, इसके अतिरिक्त दुर्लभ कलाकृतियों की प्रदर्शनी, साहित्यिक महोत्सव का आयोजन और वार्षिक कैलेंडर जारी करने की घोषणा, उनका कला को सुचारू रूप से चलाने की दिशा में एक बहुत ही अच्छा प्रयास है।
- दशको से कलाकार इस प्रतीक्षा में थे।
- गंभीरता से काम करने की अवश्यकता।
- संगीत और नृत्य शैलियाँ लुप्त होने की कगार पर।
- कलाकारों के लिए वार्षिक कैलेंडर जारी।
- घोषणाओ पर अमल करने कि आवश्यकता ।
- कलाकारों द्वारा साहित्यिक कार्यक्रम नियमित करने कि मांग।
- लोक कलाकारों कि सुध लेना ज़रूरी हे।
दशको से कलाकार इस प्रतीक्षा में थे।
जम्मूकश्मीर अब तो हालत यह थे कि कलाकारों को न कोई काम मिल रहा था ओर न ही पिछले कार्यों का भुगतान हो रहा है। हालांकि वार्षिक कैलेंडर बनाने और उसके हिसाब से कार्यक्रमों के आयोजन की बात वर्षो से चली आ रही है परन्तु इस पर तरीके से काम कभी नहीं हुआ। दशको से कलाकार इस प्रतीक्षा में रहे हैं कि कला के प्रोत्साहन के लिए कोई योजना हो। कोई नीति बने। विशेषकर जब से जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश बना है। उसी समय से कलाकारों, साहित्यकारों को एक आशा होने लगी थी कि अब किसी दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ कला का विकास किया जाएगा परन्तु इसकी प्रतीक्षा बढ़ता ही जा रहा थी।
गंभीरता से काम करने की अवश्यकता।
कला के संरक्षण के लिए गंभीरता से काम करने की अवश्यकता कलाकारों, साहित्यकारों का कहना है कि जब तक कला, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए गंभीरता से नीति के अनुसार कार्य नहीं होता सकारात्मक परिणाम संभव नहीं हैं। डोगरा सदर सभा के अध्यक्ष पूर्व मंत्री श्री गुलचैन सिंह चाढ़क ने पत्रकारों को जानकारी दी कि जब तक कला का और कलाकारों का प्रोत्साहन नहीं होगा विरासत का संरक्षण संभव नहीं है। जम्मूकश्मीर के कलाकारों की हालत बहुत दयनीय है। जब तक उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा लोक कला का संरक्षण संभव नहीं हो सकता।
संगीत और नृत्य शैलियाँ लुप्त होने की कगार पर।
जम्मूकश्मीर में प्रोत्साहन न होने के कारण आज बहुत-सी संगीत और नृत्य शैलियाँ लुप्त होने की कगार पर है। लोक नाट्य परंपराओं के प्रोत्साहन के लिए ज़रूरी है कि लोक कला महोत्सवों का आयोजन किए जायें। जिस प्रकार से पहले जम्मू महोत्सव होता रहा और हजारों कलाकारों को एक साथ काम करने का अवसर मिलता रहा है। वह बहुत ज़रूरी है। जम्मूकश्मीर में ज़िला ब्लाक स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर वहाँ से श्रेष्ठ कलकाारों को राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
कलाकारों के लिए वार्षिक कैलेंडर जारी।
सामान्य हालात में जम्मूकश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की गतिविधयाँ पिछले वर्षो के मुकाबले काफ़ी बढ़ी थी। कलाकारों को भी काफ़ी मिलने लगे थे परन्तु कोरोना संक्रमण के कारण काम बिलकुल बंद-सा होने लगा था। इस समय के तो हालत यह थे कि कलाकारों को न कोई काम मिल रहा था और न ही पिछले कार्यों का भुगतान हो रहा था। हालांकि वार्षिक कैलेंडर बनाने और उसके हिसाब से कार्यक्रमों के आयोजन की बात वर्षो से होती रही है परन्तु सही तरीके से काम कभी नहीं हुआ।
घोषणाओ पर अमल करने कि आवश्यकता ।
जम्मूकश्मीर उपराज्यपाल ने राष्ट्रीय उत्सवों पर कार्यक्रमों के आयोजन की घोषणा की है। विचार करने वाली बात यह हे कि ऐसा पहले भी होता रहा है परन्तु अब कार्यक्रमों को कौन-सी दिशा दी जाती है, यह महत्त्वपूर्ण होगा। कलाकारों ओर साहित्यकाराें ने उपराज्यपाल की घोषणाओं का स्वागत करते हुए पत्रकारों को बताया कि घोषणाएँ तो कई बार होती हैं परन्तु उन पर अमल किया जाए तो कला का विकास संभव होगा।
कलाकारों द्वारा साहित्यिक कार्यक्रम नियमित करने कि मांग।
जम्मूकश्मीर राज्य राष्ट्रीय भाषा प्रचार समिति के महासचिव डा. श्री भारत भूषण द्वारा पत्नीटाप में साहित्यिक महोत्सव के आयोजन का स्वागत करते हुए पत्रकारों से कहा कि साहित्यिक कार्यक्रम नियमित होते रहने चाहिए। यदि गतिविधियों का एक निर्धारित समय सूची हो तो दूसरे राज्यों में रहने वाले भी अपने कार्यक्रम समय सूची के अनुरूप अपनी तैयारी कर सकते हैं।
लोक कलाकारों कि सुध लेना ज़रूरी हे।
जम्मूकश्मीर के प्रसिद्ध हास्य कलाकार बसंत वियोगी ने पत्रकारों से कहा कि आज तक कला को लेकर कोई नीति नहीं बन पायी हे। कलाकारों का प्रशिक्षण किस प्रकार से हो इस दिशा में कभी कोई नीति नहीं बनाई गई। किस कलाकार को किस कार्यक्रम में अवसर मिलना चाहिए। किस कलाकार को कितने कार्यक्रम मिलने चाहिए। किसी को कोई पता ही नहीं हे। लोक कलाकारों की सुध लेने वाला ही कोई नहीं है। जब तक कलाकारों को अवसर नहीं मिलेंगे तो सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण कैसे संभव होगा।

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